Aman Mishra

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रुद्र : भाग-३

            सभी लोग बुरी तरह से चौंक गए थे। जहाँ हर कोई आर्या का नाम लेने पर भी भयग्रस्त हो जाता है। वहाँ आज एक लड़के ने आर्या के खास आदमी की सरेआम हत्या कर दी। रेल्वे स्टेशन पर सभी लोग कभी शेरा के मृत शरीर तो कभी रुद्र को आँखे फाड़कर देख रहे थे।
           अभय, विराज और विकास अपलक रुद्र को देख रहे थे। सभी के चेहरे का रंग उड़ा हुआ था, लेकिन रुद्र के चेहरे पर मुस्कान थी। उसने अपनी गन को अपने हाथ में घुमाते हुए अंदर रख लिया। उसने पास ही बेंच पर पड़े अपने बैग को उठाकर पीठ पर टांग लिया। रुद्र धीरे-धीरे बढ़ता हुआ अभय के पास आया। विराज और विकास भी अब अभय के पास आ चुके थे।
          रुद्र ने अभय के कंधे पर हाथ रखा और कहा, " अभय तू ठीक तो है ना?"
          अभय ने रुद्र के सवाल का कोई जवाब नहीं दिया।
          "तेरे पास गन क्यों है रुद्र?" विराज ने थोड़े सख्त लहजे के साथ पूछा।
         
           "यार वो सब मैं तुम लोगों को बाद में बताता हूँ। पहले एक काम कर, एम्बुलेंस को बुला और इस लाश को यहाँ से भिजवा, लोग काफी घबरा गए हैं। और तुम सब भी अस्पताल चलो। काफी चोटें लगी हैं, तुम लोगों को।" रुद्र ने एक नजर उनके घावों पर डालते हुए कहा।
   
          "पहले मेरे सवाल का सही जवाब दे। और अगर तेरे पास इसका जवाब नहीं है, तो मुझे ना चाहते हुए भी तुझे अरेस्ट करना पड़ेगा।" विराज ने रुद्र को घूरते हुए कहा।

          "ये क्या बोल रहा है तू? तू रुद्र को अरेस्ट करेगा? अपने दोस्त को? आज अगर वो सही समय पर नहीं आता, तो अभय हमारे साथ नहीं होता।" विकास ने विराज के कंधों को जोर से हिलाते हुए कहा।

           "विराज तू कुछ ज्यादा ही सख्त हो रहा है। मुझे यकीन है, कि रुद्र कुछ गलत नहीं कर सकता।" अभय ने अपनी चुप्पी तोड़ते हुए कहा।

          "नहीं अभय। विराज बिल्कुल सही कर रहा है। एक पुलिसवाले का काम ही है, कि वो निष्पक्षता से फैसले ले। गुनहगार, गुनहगार होता है। चाहे वो कोई अपना हो या पराया। मैं बहुत खुश हूँ, ये देखकर की मेरे दोस्त कितने ईमानदार हैं।" रुद्र ने विराज की ओर गर्व से देखते हुए कहा।

         "वैसे विराज, तू मुझे एक बात बता, तुझे लगता है मैं कोई गैरकानूनी काम कर सकता हूँ?" रुद्र ने मुस्कान के साथ कहा।
           विराज ने ना में सर हिलाया और उसकी आँखें हल्की नम हो गईं।
           " ये गन मेरे पास क्यों है, यही जानना है ना तुम लोगों को?" विराज ने कुछ कदम पीछे हटते हुए कहा।
            अभय, विराज और विकास को समझ नहीं आया की क्या कहें। वो बस रुद्र की ओर देख रहे थे। रुद्र ने अपने जीन्स की पीछे वाली जेब से कुछ कार्ड जैसी चीज़ निकाली और उसे उन तीनों के चेहरे का सामने लाया।
            तीनों की आँखें फटी-की-फटी रह गईं। वो एक आईडी कार्ड था। उसपर रुद्र की तस्वीर थी और उसके नीचे उस नाम लिखा था। अभय, विराज और विकास कुछ बोलनेे की स्थिति में नहीं थे।
           काफी मेहनत के बाद अभय और विकास ने एक साथ लड़खड़ाती हुई आवाज में कहा ....."ए........एसी...पी...रुद्र रघुवंशी!!!!

          





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          एक जीप अचानक से उस बड़े से काले गेट के सामने आकर रुकी। जीप में से ६-७ आदमी निकले। सभी को देखकर लग रहा था कि कहीं से मारपीट करके आए हैं। कुछ के होठों के कोनों से खून गिर रहा था, तो कुछ के सर पर चोट लगी थी। जो आदमी जीप चला रहा था, उसने गेट के पास पहुँचते ही दो-तीन बार लगातार हॉर्न बजाया।
गेट के पास ही खड़े कुछ लोगों में से दो लोग जीप के पास आए। दोनों कसरती शरीर वाले थे और उनके हाथों में बंदूकें थीं। दोनों ने काले रंग के चुस्त कपड़े पहने हुए थे।
             "क्या हुआ रे मुन्ना? तुम सब को इतनी चोट कैसे लगी बे? लगता है किसीने जमकर कुटाई की है। और ये शेरा भाई कहाँ हैं? तुम लोगों के साथ ही गए थे ना वो।" उन गार्ड्स में से एक ने जीप के अंदर नजर दौड़ाते हुए ड्राइविंग सीट पर बैठे मोटे आदमी से पूछा।

            "अरे, पूछ मत रे राजू। आज तो एकदम बवाल हो गया। बॉस ने जिस सोनार की बीवी का किडनैप करने बोला था ना, उसका पीछा करते-करते हम शेरा भाई के साथ स्टेशन तक गए। उधर वो साला एसपी विराज और वो उसके दाएँ-बाएँ....क्या नाम है रे....हाँ... इंस्पेक्टर अभय और वो विकास मिल गए। सालों ने पता नहीं क्या खाया था। खूब धोया रे अपने को। और फिर अचानक एक छोकरे ने शेरा भाई की खोपड़ी उड़ा दी गोली मारके। " मुन्ना ने सारी बातें बताई।
           
           इतना सुनकर दोनों गार्ड्स को झटका लगा। दूसरे वाले गार्ड ने कहा,"क्या बोला रे? शेरा भाई को टपका दिया। कौन था वो?"
         
            "पता नहीं रे। उसी के बारे में तो आर्या भाई को बोलने आए हैं हम लोग।" मुन्ना ने जीप स्टार्ट करते हुए कहा।
             दोनों गार्ड्स भागकर गए और गेट खोल दिया। जीप पीछे धूल का गुबार उड़ाती हुई अंदर गयी। मुन्ना ने उस बड़े से बंगले के आगे गाड़ी रोक दी। सभी लोग गाड़ी से उतर कर मुख्य दरवाजे तक गए। वहाँ पहुँचकर मुन्ना ने एक आदमी के पास जाकर कुछ बात की। उसके बाद दो लोगों ने दरवाजे को खोला। मुन्ना और उसके साथी सीधा बंगले के अंदर घुस गए।
            बंगले में अंदर घुसते ही एक बड़ा सा हॉल था। हॉल की दीवारें सुनहरे रंग की थीं। बड़ी-बड़ी खिड़कियों पर लाल रंग के पर्दे लगे हुए थे। छत के बीचोंबीच  बड़ा सा झूमर लगा हुआ था। जगह-जगह लाइट लगी हुई थी। पूरा हॉल रोशनी से जगमगा रहा था। फिर भी ना जाने क्यों, चारों ओर  अजीब सी नकारात्मकता फैली हुई थी।
           हॉल के बीच में सोफे पर आर्या बड़े ही आराम से बैठ कर कोई किताब पढ़ रहा था। उसने चुस्त सफेद शर्ट और जीन्स पहनी हुई थी, जिसकी वजह से उसका गठीला शरीर और उभर रहा था। उसके हाथ में सोने का ब्रेसलेट और गले में सोने की चैन थी।
           आर्या किताब पढ़ ही रहा था, कि उसे कुछ आवाज आयी। उसने अपनी नज़रें उठाकर देखा की उसके सामने मुन्ना और कुछ आदमी चोटिल अवस्था में खड़े थे। उसने एक नज़र उन सभी पर डाली और फिर अपनी नजरों को मुन्ना पर स्थिर कर दिया। मुन्ना ने बड़ी मुश्किल से आर्या की ओर देखा। आर्या की आँखे देखते ही मुन्ना की रीढ़ में सिरहन दौड़ गयी।
          "ये सब कैसे हुआ, और वो शेरा कहाँ है?काम पूरा हुआ या नहीं?" आर्या ने शांत स्वर में कहा, लेकिन उसकी कड़क आवाज सुनते ही सभी के पसीने छूटने लगे।
           
             "भाई..... वो..... वो काम नहीं हुआ भाई। वो श....शेरा भाई को मार दिया।" मुन्ना ने कांपती हुई आवाज में कहा।
  
              "किसने किया ये!?" आर्या ने किताब को सोफे पर जोर से पटकते हुए कड़क आवाज में पूछा।
               मुन्ना और बाकी सब पहले से ही काफी डरे हुए थे। आर्या को गुस्से में देख उन सबकी हालत और भी ज्यादा खराब हो गई। मुन्ना ने जैसे-तैसे कांपते हुए सारा हाल बता दिया। मुन्ना जैसे-जैसे बात बता रहा था, आर्या का गुस्सा बढ़ता ही जा रहा था। आर्या की आँखें गुस्से से लाल हो चुकी थीं। आर्या अचानक से खड़ा हो गया। मुन्ना और उसके साथी डर के मारे कुछ कदम पीछे हट गए।
          "तुम लोगों में इतनी हिम्मत कहाँ से आ गई, जो तुम लोग पुलिसवालों से पिटने के बाद, बिना उस लड़के का पता लगाए जिसने शेरा को मार दिया, मेरे सामने आकर खड़े हो गए? तुम लोगों ने क्या समझा, मैं यहाँ तुम लोगों को प्यार से अपने पास बुलाकर तुम्हारी चोटों पर दवा लगाने वाला हूँ? आर्या ने उन लोगों की ओर धीरे-धीरे बढ़ते हुए कहा।
         सभी के दिल जोरों से धड़क रहे थे। आर्या के रूप में उन्हें अपनी मौत दिखाई दे रही थी। उन सभी को आर्या के गुस्से के बारे में पता था। अब बाकी के सारे लोग मन-ही-मन मुन्ना को कोस रहे थे। आज मुन्ना की वजह से शायद उन सभी को जान से हाथ धोना पड़ेगा।
         आर्या के चेहरे पर अब एक कुटिलता भरी मुस्कान थी। उसने अपना हाथ पीछे किया और पीछे टेबल पर रखी गन उठा ली। मुन्ना और उसके लोग चाह कर भी कुछ नहीं कर सकते थे। अगर वो बंगले के बाहर जाते तो उन्हें आर्या के गार्ड्स के हाथों मरना पड़ता और यहाँ वो आर्या के हाथों मरेंगे। सबको पता चल गया कि आज उनमें से कोई जिंदा नहीं बचेगा। सभी के पैर जम गए थे। आर्या ने अचानक ही उन सभी पर लगातार गोलियां बरसा दी। कुछ लोग थोड़े समय तक तड़पे और कुछ तो तुरंत ही मर गए। पूरी जगह खून-ही-खून फैला हुआ था।
            अंदर से गोलियों की आवाज सुनकर कई सारे गार्ड्स बंगले के अंदर आ गए। उन्होंनेे अंदर का नजारा देखकर अंदाजा लगा लिया कि क्या हुआ होगा। उनमें से एक गार्ड बाहर गया और अपने साथ कुछ और गार्ड्स को लेकर आ गया। उन सभी ने मिलकर सारी लाशों को बाहर निकाला। फर्श पर से खून को साफ किया गया।
            थोड़ी देर बाद आर्या फिर उस हॉल में अकेले बैठा हुआ था। उसकी आँखों में अभी भी गुस्सा साफ झलक रहा था। आज तक उसका कोई आदमी किसी पुलिसवाले के हाथों भी नहीं मारा गया था। आज जो हुआ उससे कहीं-न-कहीं उसके मन में ये डर, घर कर गया था कि कहीं इस घटना से उसका आतंक लोगों के दिलों में कम ना हो जाए।
         आर्या बैठे हुए यही सारी बातें सोच रहा था, कि अचानक ही उसका फोन बजने लगा। उसने जैसे ही फोन की स्क्रीन पर देखा, उसके माथे पर शिकन आ गई। शायद ही किसी ने कभी आर्या के चेहरे पर डर की झलक देखी होगी।
         आर्या ने फोन उठाया और कुछ समय तक दूसरी ओर से किसी वृद्ध व्यक्ति की आवाज आई। आवाज से लग रहा था, कि उस वृद्ध की उम्र लगभग साठ के आसपास की होगी। लेकिन आवाज में एक अलग ही कड़कपन था।
         "आर्या, मैं तुम्हें एक अड़तालीस घंटे देता हूँ। इतने समय में पता लगाओ की ऐसा कौन इस शहर में आ गया जिसने तुमसे उलझने की हिम्मत दिखाई। अगर तुम उसका पता लगाकर उसको सजा नहीं दे पाए, तो तुम जानते ही हो, मुझे तुम्हारी कुर्सी पर किसी और को बैठाने में ज्यादा समय नहीं लगेगा।" उस आदमी ने अपनी कड़क आवाज में कहा।
   
           "जी। आप चिंता ना करें। इसकी नौबत नहीं आएगी।" आर्या ने दूसरे व्यक्ति को भरोसा दिलाते हुए कहा।

            दूसरी तरफ जो व्यक्ति था उसने बिना कुछ कहे फोन काट दिया। आर्या अब फोन एक किनारे रख कर कुछ सोचने लगा। उसके चेहरे पर हमेशा की तरह गुस्सा तो था ही, लेकिन आज गुस्से के साथ-साथ कभी न दिखने वाली चिंता भी थी।






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           स्टेशन परिसर से निकलने के बाद रुद्र, अभय, विराज और विकास विराज की जीप से अस्पताल गए और वहाँ उनकी चोटों पर पट्टी बंधवाने के बाद वो लोग मंदिर की ओर चल पड़े। रुद्र को बचपन से ही ज्यादा से ज्यादा समय शांत वातावरण में व्यतीत करना पसंद था। रुद्र इस शांति की खोज में ज्यादातर मंदिर चला जाता था। वहाँ उसे बहुत सुकून मिलता। आज भी उसने घर जाने से पहले विराज को गाड़ी मंदिर की तरफ ले जाने को कहा।   अभय, विराज और विकास अभी भी इसी इंतजार में थे, कि कब रुद्र उन्हें सारी बात विस्तार से बताएगा।
           विराज गाड़ी चला रहा था और रुद्र उसकी बगल वाली सीट पर बैठा खिड़की से बाहर का नजारा देख रहा था। अभय और विकास पिछली सीट पर बैठे हुए थे। दोनों ही अपने-अपने विचारों में डूबे हुए थे।
            विराज ने अचानक ही गाड़ी रोक दी। अभय और विकास अपनी सोच से बाहर आ गए और खिड़की से बाहर देखा। वो लोग अब शिव मंदिर के सामने थे। चारों गाड़ी से नीचे उतरे। सीढ़ियों के पास उन्होंने जूते उतारे और ऊपर चले गए। मंदिर परिसर काफी बड़ा था। जगह-जगह पेड़-पौधे लगे हुए थे। चारों तरफ हरी-हरी घास आंखों को शीतलता प्रदान कर रही थी। मन्दिर के अंदर शिव जी प्रतिमा स्थापित थी। चारों दोस्तों ने विधिपूर्वक पूजा की और दर्शन करने के बाद वहीं घास पर आराम से बैठ गए।
            अभय, विराज और विकास रुद्र को लगातार देख रहे थे। तीनों ने आपस में कुछ इशारा किया और फिर विकास ने सबसे पहले रुद्र से पूछा,"भाई, अब तो बता ये तेरे पुलिस ऑफिसर बनने का क्या चक्कर है?"

            "हाँ यार। तू तो किसी आईटी कंपनी में ट्रेनिंग पर गया था ना?" विराज ने विकास की बात का समर्थन करते हुए कहा।

            "रुको रुको! एक साथ कितने सवाल करोगे। बताता हूँ सब" कहते हुए रुद्र अपने दोनों पैर फैलाकर आराम से बैठ गया।

            "बात ऐसी है कि, मुझे हमेशा से ही पुलिस ऑफिसर बनना था। लेकिन तुम सब को पता ही है, पापा चाहते हैं मैं कुछ साल जॉब करूँ उसके बाद उनके बिज़नेस में जुड़ जाऊँ। मुझे बिज़नेस वगेरह पसंद नहीं और ना ही ये मेरे बस की बात है। लेकिन मैं पापा को सीधे मना करके उनकी भावनाओं को ठेस नहीं पहुँचाना चाहता था। इसलिए मैंने उनसे कहा कि मैं एक इंटरव्यू में सिलेक्ट हो गया और अब मुझे ट्रेनिंग पर जाना है। जबकि मैंने कभी कोई इंटरव्यू दिया ही नहीं। बल्कि मैं तो यूपीएससी की परीक्षा में पास हुआ था और आईपीएस के इंटरव्यू में भी। इसलिए मैं झूठ बोलकर पुलिस ट्रेनिंग के लिए गया था। अब मैं असिस्टेंट कमिश्नर होने के साथ-साथ तुम तीनों का सीनियर भी हूँ।" अपनी बात पूरी करते हुए रुद्र को हल्की सी हँसी आ गयी।
            अब बाकी तीनों के भी मन को शांति मिल गयी थी। तीनों के चेहरे पर अब मुस्कान थी।
            "वो सब तो ठीक है, लेकिन अभी और दो समस्याएं हैं। पहली तो ये की अब पता नहीं वो आर्या क्या करेगा। और दूसरी ये की जब रुद्र के पापा को पता चलेगा की रुद्र अब एक पुलिस ऑफिसर है तब वो क्या करेंगे?" विराज ने थोड़े चिंता के भावों के साथ कहा।

            "वैसे रुद्र तुझे पता है ना इस आर्या के बारे में?" अभय ने रुद्र की ओर देखते हुए कहा।

            "हाँ मुझे सब पता है। मैंने यहाँ आने से पहले शहर में क्या चल रहा है उसके बारे में सब पता कर लिया था। इस आर्या से निपट लेंगे हम। टेंशन मत लो। और जहाँ तक रही पापा की बात। उन्हें मनाना थोड़ा मुश्किल हो सकता है। लेकिन ज्यादा कुछ प्रॉब्लम हुई तो माँ और दादी हैं ना।", कहते हुए रुद्र ने एक आँख मारी।
   
            "चलो ठीक है। अब जल्दी रुद्र के घर चलते हैं।" कहते हुए विराज ने सभी को उठने का इशारा किया।









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आखिर ऐसा कौन है, जिससे खुद आर्या भी घबराता है? क्या रुद्र के पिता उसे माफ करेंगे या यहाँ भी कोई मुसीबत खड़ी हो जाएगी? जानने के लिए अगला पढ़ें






         

          
  
          
             
           

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1 Comments

Shaba

05-Jul-2021 03:13 PM

बहुत ही इंट्रेस्टिंग पार्ट था ये। डिटेलिंग में भी आप माहिर हो रहे हैं। कहानी की लयबद्धता कमाल की है। जैसे-जैसे कहानी बढ़ रही है, किरदारों को और भी बेहतर तरीके से जानने की जिज्ञासा भी बढ़ रही है। लेखन-शैली भी बेहतर होती जा रही है। यकीनन एक शानदार कहान

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